वैदिक सभ्यता (Vedic civilization) भौगोलिक विस्तार
- भारत में आर्य सर्वप्रथम सप्तसैंधव प्रदेश में आकर बसे इस प्रदेश में प्रवाहित होने वाली सैट नदियों का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
 - ऋग्वेद में नदियों का उल्लेख मिलता है। नदियों से आर्यों के भौगोलिक विस्तार का पता चलता है।
 - ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी सरस्वती थी। इसे नदीतमा (नदियों की प्रमुख) कहा गया है।
 - ऋग्वैदिक काल की सबसे महत्वपूर्ण नदी सिंधु का वर्णन कई बार आया है। ऋग्वेद में गंगा का एक बार और यमुना का तीन बार उल्लेख मिलता है।
 - सप्तसैंधव प्रदेश के बाद आर्यों ने कुरुक्षेत्र के निकट के प्रदेशों पर भी कब्ज़ा कर लिया, उस क्षेत्र को ‘ब्रह्मवर्त’ कहा जाने लगा। यह क्षेत्र सरस्वती व दृशद्वती नदियों के बीच पड़ता है।
 
| ऋग्वैदिक नदियाँ | |
| प्राचीन नाम | आधुनिक नाम | 
| शुतुद्रि | सतलज | 
| अस्किनी | चिनाब | 
| विपाशा | व्यास | 
| कुभा | काबुल | 
| सदानीरा | गंडक | 
| सुवस्तु | स्वात | 
| पुरुष्णी | रावी | 
| वितस्ता | झेलम | 
| गोमती | गोमल | 
| दृशद्वती | घग्घर | 
| कृमु | कुर्रम | 
- गंगा एवं यमुना के दोआब क्षेत्र एवं उसके सीमावर्ती क्षेत्रो पर भी आर्यों ने कब्ज़ा कर लिया, जिसे ‘ब्रह्मर्षि देश’ कहा गया।
 - आर्यों ने हिमालय और विन्ध्याचल पर्वतों के बीच के क्षेत्र पर कब्ज़ा करके उस क्षेत्र का नाम ‘मध्य देश’ रखा।
 - कालांतर में आर्यों ने संपूर्ण उत्तर भारत में अपने विस्तार कर लिया, जिसे ‘आर्यावर्त’ कहा जाता था।
 
वैदिक सभ्यता (Vedic civilization) राजनीतिक व्यवस्था
सभा, समिति, विदथ जैसी अनेक परिषदों का उल्लेख मिलता है।
- ग्राम, विश, और जन शासन की इकाई थे। ग्राम संभवतः कई परिवारों का समूह होता था।
 - दशराज्ञ युद्ध में प्रत्येक पक्ष में आर्य एवं अनार्य थे। इसका उल्लेख ऋग्वेद के 10वें मंडल में मिलता है।
 - यह युद्ध रावी (पुरुष्णी) नदी के किनारे लड़ा गया, जिसमे भारत के प्रमुख कबीले के राजा सुदास ने अपने प्रतिद्वंदियों को पराजित कर भारत कुल की श्रेष्ठता स्थापित की।
 - ऋग्वेद में आर्यों के पांच कबीलों का उल्लेख मिलता है- पुरु, युद्ध, तुर्वसु, अजु, प्रह्यु। इन्हें ‘पंचजन’ कहा जाता था।
 - ऋग्वैदिक कालीन राजनीतिक व्यवस्था, कबीलाई प्रकार की थी। ऋग्वैदिक लोग जनों या कबीलों में विभाजित थे। प्रत्येक कबीले का एक राजा होता था, जिसे ‘गोप’ कहा जाता था।
 - भौगोलिक विस्तार के दौरान आर्यों को भारत के मूल निवासियों, जिन्हें अनार्य कहा गया है से संघर्ष करना पड़ा।
 - ऋग्वेद में राजा को कबीले का संरक्षक (गोप्ता जनस्य) तथा पुरन भेत्ता (नगरों पर विजय प्राप्त करने वाला) कहा गया है।
 - राजा के कुछ सहयोगी दैनिक प्रशासन में उसकी सहायता कटे थे। ऋग्वेद में सेनापति, पुरोहित, ग्रामजी, पुरुष, स्पर्श, दूत आदि शासकीय पदाधिकारियों का उल्लेख मिलता है।
 - शासकीय पदाधिकारी राजा के प्रति उत्तरदायी थे। इनकी नियुक्ति तथा निलंबन का अधिकार राजा के हाथों में था।
 - ऋग्वैदिक काल में महिलाएं भी राजनीति में भाग लेती थीं। सभा एवं विदथ परिषदों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी थी।
 - सभा श्रेष्ठ एवं अभिजात्य लोगों की संस्था थी। समिति केन्द्रीय राजनीतिक संस्था थी। समिति राजा की नियुक्ति, पदच्युत करने व उस पर नियंत्रण रखती थी। संभवतः यह समस्त प्रजा की संस्था थी।
 - ऋग्वेद में तत्कालीन न्याय वयवस्था के विषय में बहुत कम जानकारी मिलती है। ऐसा प्रतीत होता है की राजा तथा पुरोहित न्याय व्यवस्था के प्रमुख पदाधिकारी थे।
 - वैदिक कालीन न्यायधीशों को ‘प्रश्नविनाक’ कहा जाता था।
 - विदथ आर्यों की प्राचीन संस्था थी।
 - न्याय व्यवस्था वर्ग पर आधारित थी। हत्या के लिए 100 ग्रंथों का दान अनिवार्य था।
 - राजा भूमि का स्वामी नहीं होता था, जबकि भूमि का स्वामित्व जनता में निहित था।
 - विश कई गावों का समूह था। अनेक विशों का समूह ‘जन’ होता था।
 
| वैदिक कालीन शासन के पदाधिकारी | |
| पुरोहित | राजा का मुख्य परामर्शदाता | 
| कुलपति | परिवार का प्रधान | 
| व्राजपति | चारागाह का अधिकारी | 
| स्पर्श | गुप्तचर | 
| पुरुष | दुर्ग का अधिकारी | 
| सेनानी | सेनापति | 
| विश्वपति | विश का प्रधान | 
| ग्रामणी | ग्राम का प्रधान | 
| दूत | सुचना प्रेषित करना | 
| उग्र | पुलिस | 
वैदिक सभ्यता (Vedic civilization) सामाजिक व्यवस्था
- संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलन में थी।
 - पितृ-सत्तात्मक समाज के होते हुए इस काल में महिलाओं का यथोचित सम्मान प्राप्त था। महिलाएं भी शिक्षित होती थीं।
 - प्रारंभ में ऋग्वैदिक समाज दो वर्गों आर्यों एवं अनार्यों में विभाजित था। किंतु कालांतर में जैसा की हम ऋग्वेद के दशक मंडल के पुरुष सूक्त में पाए जाते हैं की समाज चार वर्गों- ब्राह्मण, क्षत्रिय, बैश्य और शूद्र; मे विभाजित हो गया।
 - विवाह व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन का प्रमुख अंग था। अंतर-जातीय विवाह होता था, लेकिन बाल विवाह का निषेध था। विधवा विवाह की प्रथा प्रचलन में थी।
 - पुत्र प्राप्ति के लिए नियोग की प्रथा स्वीकार की गयी थी। जीवन भर अविवाहित रहने वाली लड़कियों को ‘अमाजू कहा जाता था।
 - सती प्रथा और पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था।
 - ऋग्वैदिक समाज पितृसत्तात्मक था। पिता सम्पूर्ण परिवार, भूमि संपत्ति का अधिकारी होता था
 - आर्यों के वस्त्र सूत, ऊन तथा मृग-चर्म के बने होते थे।
 - ऋग्वैदिक काल में दास प्रथा का प्रचलन था, परन्तु यह प्राचीन यूनान और रोम की भांति नहीं थी।
 - आर्य मांसाहारी और शाकाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे।
 
ऋग्वैदिक धर्म
- ऋग्वैदिक धर्म की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसका व्यावसायिक एवं उपयोगितावादी स्वरूप था।
 - आर्यों का धर्म बहुदेववादी था। वे प्राकृतिक भक्तियों-वायु, जल, वर्षा, बादल, अग्नि और सूर्य आदि की उपासना किया करते थे।
 - ऋग्वेद में देवताओं की संख्या 33 करोड़ बताई गयी है। आर्यों के प्रमुख देवताओं में इंद्र, अग्नि, रूद्र, मरुत, सोम और सूर्य शामिल थे।
 - ऋग्वैदिक काल का सबसे महत्वपूर्ण देवता इंद्र है। इसे युद्ध और वर्षा दोनों का देवता माना गया है। ऋग्वेद में इंद्र का 250 सूक्तों में वर्णन मिलता है।
 - इंद्र के बाद दूसरा स्थान अग्नि का था। अग्नि का कार्य मनुष्य एवं देवता के बीच मध्यस्थ स्थापित करने का था। 200 सूक्तों में अग्नि का उल्लेख मिलता है।
 - ऋग्वैदिक लोग अपनी भौतिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए यज्ञ और अनुष्ठान के माध्यम से प्रकृति का आह्वान करते थे।
 - ऋग्वैदिक काल में मूर्ति पूजा का उल्लेख नहीं मिलता है।
 - देवताओं में तीसरा स्थान वरुण का था। इसे जाल का देवता माना जाता है। शिव को त्रयम्बक कहा गया है।
 - ऋग्वैदिक लोग एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे।
 
ऋग्वैदिक देवता
- अंतरिक्ष के देवता- इन्द्र, मरुत, रूद्र और वायु।
 - आकाश के देवता- सूर्य, घौस, मिस्र, पूषण, विष्णु, ऊषा और सविष्ह।
 - पृथ्वी के देवता- अग्नि, सोम, पृथ्वी, वृहस्पति और सरस्वती।
 - पूषण ऋग्वैदिक काल में पशुओं के देवता थे, जो उत्तर वैदिक काल में शूद्रों के देवता बन गए।
 - ऋग्वैदिक काल में जंगल की देवी को ‘अरण्यानी’ कहा जाता था।
 - ऋग्वेद में ऊषा, अदिति, सूर्य आदि देवियों का उल्लेख मिलता है।
 - प्रसिद्ध गायत्री मंत्र, जो सूर्य से संबंधित देवी सावित्रि को संबोधित है, सर्वप्रथम ऋग्वेद में मिलता है।
 
ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्था
- कृषि एवं पशुपालन
 
- गेंहू की खेती की जाती थी।
 - इस काल के लोगों की मुख्य संपत्ति गोधन या गाय थी।
 - ऋग्वेद में हल के लिए लांगल अथवा ‘सीर’ शब्द का प्रयोग मिलता है।
 - उपजाऊ भूमि को ‘उर्वरा’ कहा जाता था।
 - ऋग्वेद के चौथे मंडल में संपूर्ण मंत्र कृषि कार्यों से संबद्ध है।
 - ऋग्वेद के ‘गव्य’ एवं ‘गव्यपति’ शब्द चारागाह के लिए प्रयुक्त हैं।
 - सिंचाई का कार्य नहरों से लिए जाता था। ऋग्वेद में नाहर शब्द के लिए ‘कुल्या’ शब्द का प्रयोग मिलता है।
 - भूमि निजी संपत्ति नहीं होती थी उस पर सामूहिक अधिकार था।
 - ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्था का आधार कृषि और पशुपालन था।
 - घोडा आर्यों का अति उपयोगी पशु था।
 
- वाणिज्य- व्यापार
 
- वाणिज्य-व्यापार पर पणियों का एकाधिकार था। व्यापार स्थल और जल मार्ग दोनों से होता था।
 - सूदखोर को ‘वेकनाट’ कहा जाता था। क्रय विक्रय के लिए विनिमय प्रणाली का अविर्भाव हो चुका था। गाय और निष्क विनिमय के साधन थे।
 - ऋग्वेद में नगरों का उल्लेख नहीं मिलता है। इस काल में सोना तांबा और कांसा धातुओं का प्रयोग होता था।
 - ऋण लेने व बलि देने की प्रथा प्रचलित थी, जिसे ‘कुसीद’ कहा जाता था।
 
- व्यवसाय एवं उद्योग धंधे
 
- ऋग्वेद में बढ़ई, सथकार, बुनकर, चर्मकार, कुम्हार, आदि कारीगरों के उल्लेख से इस काल के व्यवसाय का पता चलता है।
 - तांबे या कांसे के अर्थ में ‘आपस’ का प्रयोग यह संके करता है, की धातु एक कर्म उद्योग था।
 - ऋग्वेद में वैद्य के लिए ‘भीषक’ शब्द का प्रयोग मिलता है। ‘करघा’ को ‘तसर’ कहा जाता था। बढ़ई के लिए ‘तसण’ शब्द का उल्लेख मिलता है।
 - मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य एक व्यवसाय था।
 
वैदिक साहित्य
- वेदों की संख्या चार है- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद।
 - ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद विश्व के प्रथम प्रमाणिक ग्रन्थ है।
 - वेदों को अपौरुषेय कहा गया है। गुरु द्वारा शिष्यों को मौखिक रूप से कंठस्त कराने के कारण वेदों को “श्रुति” की संज्ञा दी गई है।
 - ऋग्वेद स्तुति मन्त्रों का संकलन है। इस मंडल में विभक्त 1017 सूक्त हैं। इन सूत्रों में 11 बालखिल्य सूत्रों को जोड़ देने पर कुल सूक्तों की संख्या 1028 हो जाती है।
 
वेद उपवेद
1) ऋग्वेद आर्युवेद ( चिकित्सा से सम्बधित)
2) यजुर्वेद धर्नुवेद ( धनुर विद्या से सम्बधित )
3) सामवेद गन्धर्ववेद ( विवाह से सम्बधित )
4) अर्थर्ववेद शिल्पवेद ( निर्माण कला से सम्बधित )
ऋग्वेद
| ऋग्वेद के रचयिता | |
| मण्डल | ऋषि | 
| द्वितीय | गृत्समद | 
| तृतीय | विश्वामित्र | 
| चतुर्थ | धमदेव | 
| पंचम | अत्री | 
| षष्ट | भारद्वाज | 
| सप्तम | वशिष्ठ | 
| अष्टम | कण्व तथा अंगीरम | 
- दशराज्ञ युद्ध का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है। यह ऋग्वेद की सर्वाधिक प्रसिद्ध ऐतिहासिक घटना मानी जाती है।
 - ऋग्वेद का नाम मंडल पूरी तरह से सोम को समर्पित है।
 - ऋग्वेद में 2 से 7 मण्डलों की रचना हुई, जो गुल्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अभि, भारद्वाज और वशिष्ठ ऋषियों के नाम से है।
 - प्रथम एवं दसवें मण्डल की रचना संभवतः सबसे बाद में की गयी। इन्हें सतर्चिन कहा जाता है।
 - गायत्री मंत्र ऋग्वेद के दसवें मंडल के पुरुष सूक्त में हुआ है।
 - ऋग्वेद के दसवें मण्डल के 95वें सूक्त में पुरुरवा,ऐल और उर्वशी बुह संवाद है।
 - 10वें मंडल में मृत्यु सूक्त है, जिसमे विधवा के लिए विलाप का वर्णन है।
 
ऋग्वेद के नदी सूक्त में व्यास (विपाशा) नदी को ‘परिगणित’ नदी कहा गया है।
यजुर्वेद
- यजु का अर्थ होता है यज्ञ।
 - यजुर्वेद वेद में यज्ञ की विधियों का वर्णन किया गया है।
 - इसमे मंत्रों का संकलन आनुष्ठानिक यज्ञ के समय सस्तर पाठ करने के उद्देश्य से किया गया है।
 - इसमे मंत्रों के साथ साथ धार्मिक अनुष्ठानों का भी विवरण है जिसे मंत्रोच्चारण के साथ संपादित किए जाने का विधान सुझाया गया है।
 - यजुर्वेद की भाषा पद्यात्मक एवं गद्यात्मक दोनों है।
 - यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं- कृष्ण यजुर्वेद तथा शुक्ल यजुर्वेद।
 - कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाएं हैं- मैत्रायणी संहिता, काठक संहिता, कपिन्थल तथा संहिता। शुक्ल यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं- मध्यान्दीन तथा कण्व संहिता।
 - यह 40 अध्याय में विभाजित है।
 
सामवेद
सामवेद की रचना ऋग्वेद में दिए गए मंत्रों को गाने योग्य बनाने हेतु की गयी थी।
- इसमे 1810 छंद हैं जिनमें 75 को छोड़कर शेष सभी ऋग्वेद में उल्लेखित हैं।
 - सामवेद तीन शाखाओं में विभक्त है- कौथुम, राणायनीय और जैमनीय।
 - सामवेद को भारत की प्रथम संगीतात्मक पुस्तक होने का गौरव प्राप्त है
 
अथर्ववेद
- इसमें प्राक्-ऐतिहासिक युग की मूलभूत मान्यताओं, परम्पराओं का चित्रण है। अथर्ववेद 20 अध्यायों में संगठित है। इसमें 731 सूक्त एवं 6000 के लगभग मंत्र हैं।
 - इसमें रोग तथा उसके निवारण के साधन के रूप में जानकारी दी गयी है।
 - अथर्ववेद की दो शाखाएं हैं- शौनक और पिप्पलाद।
 
प्रमुख दर्शन एवं उसके प्रवर्तक
- चार्वाक – चार्वाक
 - योग – पतंजलि
 - सांख्य – कपिल
 - न्याय – गौतम
 - पूर्वमीमांसा – जैमिनी
 - उत्तरमीमांसा – बादरायण
 - वैशेषिक – कणाक या उलूम
 
- एक और वर्ग ‘ पणियों ‘ का था जो धनि थे और व्यापार करते थे|
 - भिखारियों और कृषि दासों का अस्तित्व नहीं था. संपत्ति की इकाई गाय थी जो विनिमय का माध्यम भी थी. सारथी और बढ़ई समुदाय को विशेष सम्मान प्राप्त था|
 - आर्यों का समाज पितृप्रधान था| समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार थी जिसका मुखिया पिता होता था जिसे कुलप कहते थे|
 - महिलाएं इस काल में अपने पति के साथ यज्ञ कार्य में भाग लेती थी|
 - बाल विवाह और पर्दाप्रथा का प्रचलन इस काल में नहीं था|
 - विधवा अपने पति के छोटे भाई से विवाह कर सकती थी. विधवा विवाह, महिलाओं का उपनयन संस्कार, नियोग गन्धर्व और अंतर्जातीय विवाह प्रचलित था|
 - महिलाएं पढ़ाई कर सकती थीं. ऋग्वेद में घोषा, अपाला, विश्वास जैसी विदुषी महिलाओं को वर्णन है|
 - जीवन भर अविवाहित रहने वाली महिला को अमाजू कहा जाता था|
 - आर्यों का मुख्य पेय सोमरस था. जो वनस्पति से बनाया जाता था|
 - आर्य तीन तरह के कपड़ों का इस्तेमाल करते थे. (i) वास (ii) अधिवास (iii) उष्षणीय (iv) अंदर पहनने वाले कपड़ों को निवि कहा जाता था. संगीत, रथदौड़, घुड़दौड़ आर्यों के मनोरंजन के साधन थे|
 - आर्यों का मुख्य व्यवसाय खेती और पशु पालन था|
 - गाय को न मारे जाने पशु की श्रेणी में रखा गया था|
 - गाय की हत्या करने वाले या उसे घायल करने वाले के खिलाफ मृत्युदंड या देश निकाला की सजा थी|
 - आर्यों का प्रिय पशु घोड़ा और प्रिय देवता इंद्र थे|
 - आर्यों द्वारा खोजी गई धातु लोहा थी|
 - व्यापार के दूर-दूर जाने वाले व्यक्ति को पणि कहा जाता था|
 - लेन-देन में वस्तु-विनिमय प्रणाली मौजूद थी|
 - ऋण देकर ब्याज देने वाले को सूदखोर कहा जाता था|
 - सभी नदियों में सरस्वती सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र नदी मानी जाती थी|
 - उत्तरवैदिक काल में प्रजापति प्रिय देवता बन गए थे|
 - उत्तरवैदिक काल में वर्ण व्यवसाय की बजाय जन्म के आधार पर निर्धारित होते थे|
 - उत्तरवैदिक काल में हल को सीरा और हल रेखा को सीता कहा जाता था|
 - उत्तरवैदिक काल में निष्क और शतमान मु्द्रा की इकाइयां थीं|
 - सांख्य दर्शन भारत के सभी दर्शनों में सबसे पुराना था. इसके अनुसार मूल तत्व 25 हैं, जिनमें पहला तत्व प्रकृति है|
 - सत्यमेव जयते, मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है|
 - गायत्री मंत्र सविता नामक देवता को संबोधित है जिसका संबंध ऋग्वेद से है|
 - उत्तर वैदिक काल में कौशांबी नगर में पहली बार पक्की ईंटों का इस्तेमाल हुआ था|
 - महाकाव्य दो हैं- महाभारत और रामायण|
 - महाभारत का पुराना नाम जयसंहिता है यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है|
 - सर्वप्रथम ‘जाबालोपनिषद ‘ में चारों आश्रम ब्रम्हचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास आश्रम का उल्लेख मिलता है|
 - गोत्र नामक संस्था का जन्म उत्तर वैदिक काल में हुआ|
 - ऋग्वेद में धातुओं में सबसे पहले तांबे या कांसे का जिक्र किया गया है. वे सोना और चांदी से भी परिचित थे. लेकिन ऋग्वेद में लोहे का जिक्र नहीं है|
 
ब्राह्मण –
वेदों की श्रुतियों को समझने के लिए ब्राह्मण की रचना की गयी है | प्रत्येक वेद के साथ कई ब्राह्मण जुड़े हुए है | इतिहास को जानने में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का महत्वपूर्ण स्थान है|
| वेद | सम्बंधित ब्राह्मण | 
| ऋग्वेद | ऐतरेय ब्राह्मण , कौषितकी ब्राह्मण | 
| सामवेद | तांड्या महाब्राह्मण, षडविंश ब्राह्मण | 
| यजुर्वेद | तैत्तरीय ब्राह्मण, शतपथ ब्राह्मण | 
| अथर्वेद | गोपथ ब्राह्मण , जैमिनीय ब्राह्मण, पंचविश ब्राह्मण | 
आरण्यक –
आरण्यक वेदों का वह भाग है जो गृहस्थाश्रम त्याग उपरान्त वानप्रस्थ लोग जंगल में पाठ किया करते थे | ये वेदों में वर्णित यज्ञों  और कर्मकांडो का वर्णन करते है | इसी कारण आरण्यक नामकरण किया गया।
- इसका प्रमुख प्रतिपाद्य विषय रहस्यवाद, प्रतीकवाद, यज्ञ और पुरोहित दर्शन है।
 - वर्तमान में सात अरण्यक उपलब्ध हैं।
 - सामवेद और अथर्ववेद का कोई आरण्यक स्पष्ट और भिन्न रूप में उपलब्ध नहीं है।
 
उपनिषद –
उपनिषद का अर्थ दर्शन होता है | इन्हें वेदांत भी कहते है क्योंकि ये वेदों के अंतिम भाग होते है | उपनिषदों की संख्या 108 है | उपनिषद “ज्ञान कांड” जबकि अरण्यक “कर्म कांड” के लिए है | इन्हीं उपनिषदों से यह स्पष्ट होता है कि आर्यों का दर्शन विश्व के अन्य सभ्य देशों के दर्शन से सर्वोत्तम तथा अधिक आगे था। आर्यों के आध्यात्मिक विकास, प्राचीनतम धार्मिक अवस्था और चिन्तन के जीते-जागते जीवन्त उदाहरण इन्हीं उपनिषदों में मिलते हैं। उपनिषदों की रचना संभवतः बुद्ध के काल में हुई, क्योंकि भौतिक इच्छाओं पर सर्वप्रथम आध्यात्मिक उन्नति की महत्ता स्थापित करने का प्रयास बौद्ध और जैन धर्मों के विकास की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप हुआ।
- कुल उपनिषदों की संख्या 108 है।
 - मुख्य रूप से शास्वत आत्मा, ब्रह्म, आत्मा-परमात्मा के बीच सम्बन्ध तथा विश्व की उत्पत्ति से सम्बंधित रहस्यवादी सिधान्तों का विवरण दिया गया है।
 - “सत्यमेव जयते” मुण्डकोपनिषद से लिया गया है।
 - मैत्रायणी उपनिषद् में त्रिमूर्ति और चार्तु आश्रम सिद्धांत का उल्लेख है।
 
वेदांग –
युगान्तर में वैदिक अध्ययन के लिए छः विधाओं (शाखाओं) का जन्म हुआ जिन्हें ‘वेदांग’ कहते हैं। वेदांग का शाब्दिक अर्थ है वेदों का अंग। वेदांग को स्मृति भी कहा जाता है, क्योंकि यह मनुष्यों की कृति मानी जाती है। वेदांग सूत्र के रूप में हैं इसमें कम शब्दों में अधिक तथ्य रखने का प्रयास किया गया है। वेदांग की संख्या 6 है |
- शिक्षा- स्वर ज्ञान
 - कल्प- धार्मिक रीति एवं पद्धति
 - निरुक्त- शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र
 - व्याकरण- व्याकरण
 - छंद- छंद शास्त्र
 - ज्योतिष- खगोल विज्ञान
 
महाकाव्य –
- रामायण (वाल्मीकि ) – इसमें भगवान राम के जीवन का उल्लेख है | इसमें 7 कांड है | इसे आदि काव्य भी कहते है तथा यह विश्व का प्राचीनतम काव्यग्रंथ है |
 - महाभारत (वेदव्यास) – इसमें कौरवों और पांडवों के जीवन का उल्लेख है | यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है | इसमें 1 लाख श्लोक है तथा यह 18 पर्वों में विभाजित है | भगवद गीता भीष्मपर्व से लिया गया है जबकि शन्ति पर्व सबसे बड़ा पर्व है |
 
पुराण –
कुल 18 पुराण है जिनके रचयिता लोमहर्ष तथा इनके पुत्र उग्रश्रवा है |
| विष्णु पुराण | मौर्य वंश | 
| मत्स्य पुराण | सातवाहन वंश | 
| वायु पुराण | गुप्त वंश | 
| भागवत पुराण | गुप्त वंश | 
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